Wednesday, July 11, 2018

ताजमहल को प्रदूषण से बचाना इतना मुश्किल क्यों है

दरअसल आगरा और आसपास के क्षेत्रों में भारी वायू प्रदूषण की वजह से संगमरमर से बनी इस इमारत का सफेद रंग अब हरे रंग में बदल रहा है.सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि 'ताजमहल को संरक्षण दिया जाए या बंद या ज़मींदोज़ कर दिया जाए'.इससे पहले 9 मई को सु्प्रीम कोर्ट ने ताजमहल के रखरखाव की स्थिति को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया) को भी आड़े हाथों लिया था. 

कोर्ट ने कहा था कि अगर ताजमहल को बचाना है तो केंद्र सरकार को एएसआई की जगह दूसरे विकल्प की तलाश करनी चाहिए. ताजमहल को अपने पुराने रूप में वापस लाने के लिए समय-समय पर कई तरह की कोशिशों को अंजाम दिया गया है.लेकिन अब तक कोई भी कोशिश इतनी कारगर सिद्ध नहीं हुई है जिससे ताजमहल की ख़ूबसूरती को लौटाया जा सके. 

ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर वो कौन सी वजहें हैं जो ताजमहल की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार हैं.
साल 2015 में भारत और अमरीकी शोधार्थियों ने ताजमहल के प्रदूषण के कारणों की जांच करने के लिए एक शोध किया था जिसके नतीज़े एक प्रतिष्ठित जर्नल एनवॉयर्नमेंटल साइंस और टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुए थे.
इसके लेखकों में से एक आईआईटी कानपुर के प्रोफ़ेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी ने बीबीसी से इस बारे में बात करते हुए कुछ सवालों के जवाब दिए हैं.

प्रोफ़ेसर त्रिपाठी कहते हैं, "ताजमहल के रंग बदलने की वजह पार्टिकुलेट मैटर हैं जिससे दिल्ली और गंगा के मैदानी भागों में स्थित तमाम दूसरे शहर भी जूझ रहे हैं. इसके अलावा कूड़ा जलाए जाने की वजह से जो धुआं और राख हवा में उड़ती है, वह उड़कर ताजमहल पर जाकर बैठ जाती है जिससे उसके रंग में अंतर आता है."
वहीं, सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवॉयरनमेंट से जुड़ी शांभवी शुक्ला ने बीबीसी से बात करते हुए ताजमहल को होने वाले नुकसान की दूसरी वजहों की ओर इशारा किया. 

शांभवी शुक्ला कहती हैं, "साल 2013 में भी ऐसी ख़बरें आई थीं कि ताजमहल के रंग में पीलापन आ रहा है, अब उसके रंग में हरापन आने की बात की जा रही है. अगर इसकी वजहों की बात करें तो आगरा में नगरनिगम का सॉलिड वेस्ट जलाया जाना एक मुख्य वजह है. इसके साथ ही ताजमहल के आसपास काफ़ी बड़ी संख्या में इंडस्ट्रीज़ भी हैं. इसके अलावा जब दिल्ली से पुरानी गाड़ियों को प्रतिबंधित किया जाता है तो ये गाड़ियां इन शहरों में ही पहुंचती हैं जिनकी वजह से आगरा के वायू प्रदूषण का स्तर काफ़ी बढ़ा हुआ है."
किन शांभवी शुक्ला मानती हैं कि जब तक इस समस्या की जड़ को ख़त्म नहीं किया जाएगा तब तक पैचवर्क से काम नहीं चलेगा.
कानपुर आईआईटी के प्रोफ़ेसर त्रिपाठी भी इस तर्क से सहमत होते हुए मुख्य समस्याओं का समाधान किए जाने पर ज़ोर देते हैं.
वह कहते हैं, "उद्देश्य ये होना चाहिए कि हम स्थानीय-क्षेत्रीय और दूरस्थ क्षेत्रों से आने वाले प्रदूषण के कणों को रोकें. स्थानीय स्तर पर सड़क के दोनों ओर फ़ुटपाथ पर घास बिछाई जा सकती है जिससे धूल उड़ना बंद हो सकती है. अगर म्युनिसिपल वेस्ट यानी शहर के कूड़े का ठीक ढंग से निस्तारण हो जाए और उसे जलाया न जाए तो 2.5 पॉल्यूटेंट को तुरंत रोका जा सकता है."
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ताजमहल को उसकी ख़ूबसूरती वापस देने के लिए टिप्पणी की थी कि अगर ताजमहल को बचाना है तो एएसआई को इससे अलग करना होगा.
ऐसे में इस समस्या के लिए विदेशी एजेंसियों की मदद पर प्रोफ़ेसर त्रिपाठी कहते हैं कि ''इससे कोई ख़ास फ़ायदा नहीं होगा क्योंकि हमारे पास अध्ययन और तकनीक मौजूद है और हमें इसका समाधान भी पता है जिन्हें अमल में लाया जाना जरूरी है.''
सुप्रीम कोर्ट में ताजमहल के संरक्षण के लिए वरिष्ठ वकील एम सी मेहता एक लंबे समय से क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. उनकी कोशिशों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर पहला आदेश 1993 में दिया था कि ताजमहल के आसपास 500 मीटर के क्षेत्र को खाली करा लिया जाए.
इसके बाद ताजमहल के क़रीब स्थित उद्योगों और श्मशान घाटों को बंद कराया गया, लेकिन इसके बाद भी वायू प्रदूषण के मामले में आगरा सबसे ख़राब स्थिति वाले शहरों में आठवें पायदान पर है.



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