Tuesday, September 25, 2018

आपकी रायनीकी रूप से पूरी तरह सही हि

गंगा का दर्द
11 सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में भरत झुनझुनवाला का लेख ‘राम भरोसे गंगा स्वच्छता अभियान’ इस संदर्भ में सरकार की कथनी और करनी का भंडाफोड़ करने वाला था। गंगा नदी की सफाई के लिए करोड़ों रुपए का आवंटन किया गया, लंबी-चौड़ी बातें की गईं। लोगों को यकीन होने लगा कि सरकार इस संदर्भ में कुछ न कुछ तो जरूर करेगी। संतों-महंतों, धार्मिक व सामाजिक संगठनों को चाहिए कि वे इस बात को सुनिश्चित करें कि नदियों में किसी प्रकार का प्रदूषण न फैलाया जाये। वर्तमान में गंगा का पानी पीने की तो बात छोड़िए, आचमन के लायक भी नहीं है।
शामलाल कौशल, रोहतक
हिन्दी की मुहिम
आजकल अधिकतर लोग अपने आप को दूसरों से अलग दिखाने के लिए राष्ट्रभाषा हिंदी को तोड़-मरोड़ कर उसमें अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करते हैं। ऐसे में हिंदी भाषा लुप्त होने की स्थिति में आ चुकी है। स्नातक कर रहे अधिकतर विद्यार्थियों को तो हिंदी अच्छे से पढ़नी-लिखनी भी नहीं आती, विशेषकर अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वालों को। यह एक चिंतनीय विषय है। इसके लिए सरकार को सख्त कदम उठाते हुए ‘हिंदी बचाओ, हिंदी अपनाओ’ अभियान चलाना चाहिए।
प्रवीन रसीला, कैथल
खाली पद भरे जाएं
हरियाणा के सरकारी स्कूलों में चालीस हजार पद खाली पड़े हैं। इस हिसाब से अन्य विभागों में कितने पद खाली होंगे, सहज अंदाजा लग सकता है। हरियाणा में जब लाखों पद खाली हैं तो देश के अन्य राज्यों में कितने पद खाली होंगे। केंद्र सरकार के कार्यालयों में कई लाख पद खाली पड़े होने की बात तो पहले ही आ चुकी है। जब कर्मचारी ही नहीं होंगे तो विकास और प्रशासनिक कार्य कैसे होंगे? इसलिए अब सरकार को जल्द ही जनहित में इन नियुक्तियों का पिटारा खोल देना चाहिए।
वेद मामूरपुर, नरेला
बंद के जख्म
एक दिन का भारत बंद हो गया। देश में इस प्रकार के विरोध के स्वर को बुलंद करने का यह नायाब हथियार न जाने कितने जख्म देगा। इस प्रकार के बंद से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान तो समूचे देश का होता है। आरक्षण की मांग हो या अन्य विरोध, यह संघर्ष ही तो राजनीति को ऊर्जा देता है। नतीजा खेमों में बंटे हम राजनीति के हवन कुंड में बार-बार अपनी ही आहुति देते हैं।
एमके मिश्रा, रांची, झारखण्डहिन्दी भाषी क्षेत्रों में उपेक्षित हिन्दी और बाज़ार में लगातार हिन्दी का बढ़ता कद हिन्दी के शानदार भविष्य का बखान करता है। दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी अमेज़न ने अब हिंदुस्तान के लोगों को हिन्दी में शॉपिंग की सुविधा प्रदान की है। कंपनी ने एंड्राइड मोबाइल एप्लीकेशन और मोबाइल वेबसाइट पर हिन्दी में शॉपिंग की सुविधा प्रदान की है।
अमेज़न इस समय दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी है और वालमार्ट, फ्लिपकार्ट, पेटीऍम मॉल जैसी कंपनियों के साथ यदि प्रतियोगिता में रहना है तो अपनी गुणवत्ता के साथ-साथ अन्य रणनीतियों पर भी ध्यान देना जरूरी है। भारत की ज्यादातर जनता हिन्दी भाषी क्षेत्रों से है और शॉपिंग के लिए जिस आयु वर्ग की क्षमता सबसे अधिक है, वो भी हिन्दी के साथ ज्यादा आराम से काम कर पाते हैं। ऐसे में यदि हिन्दी भाषी क्षेत्र में अपनी पहुंच बनानी है तो यह आवश्यक है कि उन तक उनकी भाषा में पहुंचा जाये।
अमेज़न से पहले सिर्फ स्नेपडील ही एकमात्र ऑनलाइन पोर्टल था, जिसने ऑनलाइन शॉपिंग के लिए हिन्दी के साथ अन्य भाषाओं में आने की पहल की थी। अमेज़न की वेबसाइट और एप्लीकेशन अभी मुख्य सामग्री को ही हिन्दी भाषा में रूपांतरित कर पाए हैं, प्रोडक्ट की डिटेल अभी भी अंग्रेजी में ही है। पूरी वेबसाइट हिन्दी में आ सके, इसके लिए आवश्यक है कि कंपनी प्रोडक्ट प्रदाता कंपनी के साथ कार्य करे। अमेज़न की हिन्दी में अभी तक की सबसे अच्छी बात यह है कि उन्होंने न तो बहुत ही कठिन हिन्दी का प्रयोग किया है और न ही अजीबोगरीब अनुवाद है।
आज यदि अपनी पहुंच आम जनता तक बनानी है तो लोगों से उनकी अपनी जुबान से ही जुड़ा जा सकता है । इसके लिए हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को अपनाना ही पड़ेगा। ऑनलाइन बाज़ार में वरिष्ठ आयु वर्ग के लोग भी इसमें दिलचस्पी लेने लगे हैं। बाजार अब गली-मोहल्ले से निकल कर ऑनलाइन आ गया है, लेकिन उसके ग्राहक अभी भी उसी गली-मोहल्ले के हैं। इसलिये ये जरूरी हो जाता है कि उनकी आदतों को समझा जाये और उनकी सहूलियत को वरीयता दी जाए।
आज हर बड़ी कंपनी इस बात को समझ चुकी है कि यदि आम जनता के दिल में अपनी जगह बनानी है तो उनकी भाषा में ही उनके पास जाना पड़ेगा। उन्हें ये समझाना पड़ेगा कि वो इन सुविधाओं का उपयोग कैसे करें और इसके साथ ही साथ कैसे सुरक्षित उपयोग करें, क्योंकि ऑनलाइन शॉपिंग को लेकर लोगों में एक भय बना रहता है कि यह सुरक्षित नहीं है और यहां फ्रॉड होने की संभावना ज्यादा होती है।
ग्राहकों को इस बारे में शिक्षित करना पड़ेगा कि सुरक्षित और आरामदायक शॉपिंग कैसे की जाती है। यह सब समझाने के लिए हिन्दी से बेहतर माध्यम कोई नहीं हो सकता। गूगल से लेकर एप्पल तक और प्राइवेट संस्थाओं से लेकर सरकारी तंत्र तक, सबको आज ये तो समझ आ चुका है कि जनता तक पहुंचने के लिए काम करना है तो हिन्दी में ही करना पड़ेगा। लेकिन इसमें भी एक तकनीकी समस्या ये आ रही है कि हिन्दी लिखने वाले जानकारों की कमी-सी है क्योंकि या तो आधी-अधूरी सामग्री हिन्दी में दी जा रही है या फिर गूगल से अनुवाद की हुई। अगर तकनीकी रूप से पूरी तरह सही हिन्दी हुई तो ज्यादा संभावना ये हो जाती है कि वो बहुत ही कठिन हिन्दी हो और पढ़ने वाला उससे दूर भाग जाए। इसलिए जनता के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए आवश्यक है कि न सिर्फ हिन्दी में उनके पास जाया जाये बल्कि ऐसी हिन्दी के साथ जो तकनीकी रूप से सही भी हो और समझने में आसान भी।
कंपनियों को चाहिए कि वह तकनीकी साक्षरता को बेहतर बनाने के लिए लगातार काम करें। इससे उपभोक्ता का फायदा तो होगा ही, कंपनियों को भी होगा। फिर भी इस बारे में न्यूनतम प्रशिक्षण की अभी जरूरत है। अमेजन को मुफ्त कार्यशालाओं का आयोजन करना चाहिए, जिसमें इंटरनेट से जुड़ा बुनियादी ज्ञान दिया और फिर शॉपिंग के बारे में बुनियादी जानकारी भी दी जाये

Thursday, September 6, 2018

जब लाल रंग से रंग गई राजधानी दिल्ली की सड़कें

वो नारे लगा रहे थे कि 'दिल्ली को लाल कर देंगें' और राजधानी की सड़कें और गलियां कुछ घंटों के लिए लाल रंग से पट सी गईं.
लाल रंग की टोपियां और क़मीज़ें पहने मज़दूर-किसान-कामगार, लाल रंग की ही साड़ी-ब्लाउज़ में महिला प्रदर्शनकारी बुधवार को दिल्ली की सड़कों पर मौजूद थे.
इन प्रदर्शनकारियों ने रोज़गार, मंहगाई, किसानों के उगाए अनाज का बेहतर मूल्य और दूसरी मांगों को लेकर रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक मार्च किया.
इस प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग दिल्ली पहुंचे थे.
अगर मुमताज़ और राजेश रामचंद्रन केरल के वायनाड और कासरगोड से ख़ासतौर पर प्रदर्शन के लिए आए थे तो ज्योति महेश खैरनार ने महाराष्ट्र के धुलिया से यहां तक का लंबा सफ़र तय किया था. शुभम कोलकाता के एक कॉलेज में पढ़ते हैं, लेकिन रोज़गार के कम होते मौकों को देखकर उन्हें लगा कि उन्हें इस प्रदर्शन में शामिल होना चाहिए.
वामपंथी नेता और ऑल इंडिया किसान सभा के नेता हन्नान मोल्ला ने बीबीसी से बात करते हुए दावा किया था कि तीन मज़दूर और किसान संगठन- सीटू, ऑल इंडिया किसान सभा और ऑल इंडिया एग्रीकल्चरल वर्कर्स एसोसिएशन; के नेतृत्व में निकाली जा रही 'मज़दूर-किसान संघर्ष रैली' में तक़रीबन तीन लाख लोग शामिल होंगे.
हालांकि तादाद को आंकना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन बुधवार को आयोजित संघर्ष रैली घंटों तक लुटयंस दिल्ली (जो नई दिल्ली का सेंट्रल हिस्सा है) की कई सड़कों पर एक अंतहीन पंक्ति के समान दिखी.
रैली के समापन के बाद संसद मार्ग पर भाषण में शामिल हन्नान मोल्ला ने कहा कि "यह रैली जो कि किसान-खेतिहर मज़दूर और मज़दूरों के आंदोलन के तीसरे चरण का हिस्सा थी, बहुत सफल रही."
इस रैली में केरल से एक शिक्षक राजेश राजचंद्रन शामिल होने आए थे. राजेश मोदी सरकार से डीज़ल और पेट्रोल की बढ़ती क़ीमतों को लेकर बेहद नाराज़ हैं. वे कहते हैं, "ज़रूरत की सारी चीज़ें इतनी मंहगी हो गई हैं कि जिस चीज़ के लिए उन्हें चार साल पहले 30 रुपये ख़र्च करने पड़ते थे, वो अब लगभग दोगुनी हो गई है और हमारी आमदनी है कि बढ़ नहीं रही."
हालांकि जब उनसे पूछा गया कि उनकी तनख्वाह बढ़ाने का काम केंद्र सरकार को नहीं बल्कि राज्य सरकार को करना होता है तो राजेश रामचंद्रन बोले "लेकिन मंहगाई कम करना तो मोदी सरकार के हाथ में है."
मंहगाई, पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती क़ीमतों, रोज़गार के घटते अवसर, सरकारी नौकरियों में रिक्त पदों के न भरे जाने, किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य न मिलने जैसे मुद्दों को लेकर किसान-मज़दूर संगठनों ने जो हस्ताक्षर अभियान और धरने-प्रदर्शन किए थे, राजेश रामचंद्रन उसमें भी शामिल थे.
रामचंद्रन ने दावा किया कि उनके सूबे से कम से कम छह हज़ार लोग ख़ासतौर पर इस रैली में शामिल होने के लिए आए थे.हाराष्ट्र में धुलिया के नडाना गांव से आई नन्दा देवी सोनाल को शिकायत थी कि उन्हें स्कूल में खाना पकाने के काम के इतने कम पैसे मिलते हैं कि उससे उनका गुज़ारा नहीं हो पाता और वो चाहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य में मौजूद अपनी पार्टी की सरकार को ये निर्देश दें कि उन जैसे लोगों की सरकार बेहतर देखभाल करे.
उनकी शिकायत थी कि इतने कम पैसे भी उन्हें कई महीनों तक नहीं मिलते.
रैली में हिस्सा लेने आए मदन लाल और विनोद सिंह पंजाब के लुधियाना में इन्कम टैक्स विभाग में पिछले 25 सालों से काम कर रहे हैं, लेकिन आजतक उनकी नौकरी पक्की नहीं हो पाई है जिसकी वजह से उन्हें बहुत सारी सुविधाएं जैसे छुट्टियां वग़ैरह नहीं मिल पाती हैं.
उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर से आए आज़ाद के साथ बड़ी तादाद में औरतें भी इस रैली में शामिल होने आई थीं. आज़ाद का कहना है कि वो आदिवासी हैं और वन विभाग के लोग उन्हें वहां से बेदख़ल कर देते हैं.
आज़ाद और उनके साथ आई महिलाओं की मांग है कि उन्हें ज़मीनों का पट्टा दिया जाए.
हालांकि इस रैली में शामिल होने आए तमाम लोगों की मांगें काफ़ी हद तक अलग-अलग सी नज़र आईं. रैली को कवर करने आए एक पत्रकार ने कहा भी कि रैली में मांगें कुछ बिखरी-बिखरी सी लगती हैं और इस रैली को आयोजित करने वाले नेताओं को चाहिए था कि इन्हें कुछ मुद्दों पर फ़ोकस करते.
मगर हन्नान मोल्ला का कहना था कि 'आज कि रैली में वो किसी तरह की मांग सरकार या किसी के सामने नहीं रख रहे हैं और इस रैली के ज़रिए वे बस हुकूमत को चेतावनी देना चाहते है कि अगर वो किसानों-मज़दूरों-कामगारों की आवाज़ को नहीं सुनेगी तो उसे सत्ता से बेदख़ल कर दिया जाएगा.
वामपंथी मज़दूर नेता ने कहा कि देश के 200 से अधिक किसान संगठन साथ आए हैं और उन्होंने फ़ैसला किया है कि 28, 29 और 30 नवंबर को वो किसान लॉन्ग मार्च निकालेंगे जो कई अलग-अलग रास्तों से दिल्ली में प्रवेश करेगी और 100 किलोमीटर के पैदल मार्च के बाद 30 नवंबर को सरकार को किसानों की मांग को लेकर विज्ञप्ति देगी.