Monday, December 9, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

ए के जैन कहते हैं कि यह बेहद अमानवीय है कि दूर-दराज़ के गांवों से आकर यहां बसने वाले इन लोगों के बारे में हमें हमें पता भी तभी चलता है जब ऐसा कोई हादसा होता है. वो कहते हैं कि पैसे कमाने के लिए, अपने बच्चों को एक बेहतर भविष्य देने के लिए ये लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर यहां आकर रहते हैं. एक कमरे में दर्जनों लोग. ना रहने की सुविधा ना ही कोई बेसिक सहूलियत.
राजनीतिक पार्टियां गरीबों की बात तो करती हैं लेकिन आंख बंद करके. ग़रीबों की इस स्थिति का फ़ायदा छोटे मिल मालिक और कारोबारी उठाते हैं. कम मज़दूरी और बेहद मामूली ज़रूरतों के बदले ये लोग बिना छुट्टी लिए, कम मज़दूरी पर काम करते हैं. अगर इस लिहाज़ से देखें तो मज़दूर संगठनों, लेबर डिपार्टमेंट को भी अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की ज़रूरत है. यह हादसा उनकी ग़लती भी है.
ए के जैन की ही तरह स्कूल ऑफ़ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में अर्बन प्लानिंग प्रोफ़ेसर संजुक्ता भादुरी भी यही मानती हैं कि नियमों की कायदे-क़ानूनी की जमकर अनदेखी की जाती है और ये एक बहुत बड़ा कारण है इन हादसों का और हादसों में होने वाली मौतों का.
वो कहती हैं, इमारतों को बनाने के लिए नेशनल बिल्डिंग कोड्स हैं लेकिन ज़्यादातर इन कोड्स का पालन ही नहीं किया जाता है.
संजुक्ता भादुरी कहती हैं कि अमूमन माना जाता है कि गर्मियों में ही आग लगती है सर्दियों में नहीं लेकिन यह एक गलतफ़हमी है. सर्दियों में लोग अपने घरों को अलग-अलग तरह से गर्म रखने के इंतज़ाम करते हैं जिससे आग लगने का ख़तरा बढ़ जाता है.
वो एक बड़ी वजह ये भी मानती हैं कि लोग अवैध तरीक़े से बिजली के तार खींच इस्तेमाल करते हैं. लोग पोल से सीधे तार लगाकर बिजली चुराते हैं जो गैर-क़ानूनी तो है ही साथ ही ख़तरनाक भी है.
संजुक्ता भादुरी भी मानती हैं कि नियमों के अनुसार छह मीटर चौड़ी सड़क होनी चाहिए लेकिन इसकी अनदेखी होती है. ऐसे में जब भी ऐसी स्थिति होती है तो रिस्पॉन्स टाइम में वक़्त लगता है. ऐसे में हताहत होने की आशंका बढ़ जाती है.
वो कहती हैं कि दिल्ली का मास्टर प्लान देखें उसमें कई नियम हैं जो सुरक्षित निर्माण और सुरक्षित रहने के लिए तय किये गए हैं लेकिन उनका पालन नहीं होता. लोग रिहायशी घरों का नक्शा दिखाकर उसमें फैक्ट्री चलाने लगते हैं, नियमों का उल्लंघन करते हैं और ये एक बड़ी वजह है इस तरह की घटनाओं की.
लेकिन अंत में वो ये ज़रूर कहती हैं कि सबसे बड़ी समस्या ये है कि नियम हैं, क़ायदे-क़ानून हैं लेकिन मॉनिटरिंग नहीं. और अगर कोई इन नियमों का पालन कराने वाला कोई नहीं है तो अनदेखी तो होगी ही. ये नियम सख़्ती से लागू किये जाने चाहिए.